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छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी से ज्यादा नहीं मिल सकता आरक्षण, अन्य राज्यों की याचिका हो चुकी है खारिज - chhattisgarh news update

reservation issue in chhattisgarh छत्तीसगढ़ में लगातार आरक्षण का मुद्दा गरमाता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर जहां एक ओर राजनीतिक दल आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं. वहीं आदिवासी समाज कांग्रेस सरकार सहित विपक्ष में बैठी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. भानूप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में यह देखा जा सकता है.

Can't get more than 50% reservation in Chhattisgarh!
छत्तीसगढ़ में 50% से ज्यादा नहीं मिल सकता आरक्षण!
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Published : Nov 24, 2022, 11:10 PM IST

Updated : Dec 6, 2022, 12:02 PM IST

रायपुर: reservation issue in chhattisgarh छत्तीसगढ़ में लगातार आरक्षण का मुद्दा गरमाता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर जहां एक ओर राजनीतिक दल आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं. वहीं आदिवासी समाज कांग्रेस सरकार सहित विपक्ष में बैठी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. भानूप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में यह देखा जा सकता है. लेकिन इस बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर ऐसे कौन से राज्य हैं, जहां 50% से अधिक आरक्षण की व्यवस्था है. वह किन परिस्थितियों में है. क्या वह लागू किया गया या फिर उसे भी कोर्ट के द्वारा खारिज किया गया. इन तमाम सवालों के जवाब के लिए ही भारत ने संविधान के जानकार वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा से बात की है.

छत्तीसगढ़ में 50% से ज्यादा नहीं मिल सकता आरक्षण!


50% से ज्यादा आरक्षण संभव नहीं : 50% से ज्यादा आरक्षण वाले राज्यों को लेकर जब शशांक शर्मा से सवाल किया गया तब उन्होंने बताया कि "संविधान की व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट ने जो 1992 में इंदिरा साहनी के केस में जो अपना फैसला सुनाया था. उसके बाद महाराष्ट्र राजस्थान जैसे कई राज्यों ने 50% आरक्षण देने का प्रयास किया. हालिया उदाहरण मराठा आरक्षण महाराष्ट्र में किया गया था. उस समय 68% आरक्षण महाराष्ट्र में दिया गया था. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2021 में उसे खारिज कर दिया है. एक बार पुनः स्थापित किया किसी भी राज्य में, किसी भी स्थिति में 50% से ज्यादा आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता. छत्तीसगढ़ में भी हाईकोर्ट ने 2012 में पारित अधिनियम पर जब फैसला सुनाया है. उस पर भी कहा कि 50% के भीतर ही आरक्षण लागू किया जाएगा. भले ही आरक्षण अनुपात ऊपर नीचे किया जा सकता है. लेकिन यह 50% से ज्यादा नहीं हो सकता ऐसे में आप केवल इस मुद्दे को लेकर राजनीति कर सकते. प्रस्ताव पारित कर सकते हैं. विधानसभा में विधेयक पारित कर सकते हैं, क्वांटिफाइबल आयोग लगा सकते हैं. उसकी छूट है. लेकिन संविधान के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप यह आज नहीं तो कल न्यायालय में जाकर खारिज हो जाएगा."



जब साल 2012 में यह आरक्षण लाया गया था तो क्या तत्कालीन सरकार को नहीं पता था कि आने वाले समय में इसकी क्या स्थिति होगी. इस पर शशांक शर्मा ने कहा "उनको भी यह बात पता थी. लेकिन उस समय सरकार की जिम्मेदारी है. अनुसूचित जनजाति वर्ग की संख्या 32% है. उनको इसकी ज्यादा जरूरत है तो संविधान में आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई है. वह मूलतः दो वर्गों के लिए लागू की गई थी. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति इनको आरक्षण देना सरकार की प्राथमिकता थी. उनकी आबादी के हिसाब से लाया गया. जानकार उस समय भी जानते थे कि यह संविधान की दृष्टि से सही नहीं है. इसलिए केस लंबा खींचता रहा और आखिरकार पिछले 2 महीने पहले इसका निर्णय आया तो यह खारिज हो गया."

झारखंड में 77% आरक्षण: शशांक ने कहा "झारखंड में 77% किया गया था आप कुछ भी कर लीजिए तमिलनाडु का उदाहरण देकर आप कुछ नहीं कर सकते, तमिलनाड एक बहुत ही अपवाद स्वरूप है. वहां आरक्षण स्वतंत्रता के पूर्व से चला रहा है इसलिए भारत का संविधान लागू होने के बाद उसका प्रभाव नहीं पड़ा. वहां 69% आरक्षण कब से है. यदि तमिलनाडु को छोड़ दिया जाए तो आप कहीं भी किसी प्रदेश में आरक्षण को 50% से ज्यादा करेंगे तो न्यायालय में जाकर खारिज हो जाएगा."

वहीं कुछ जगहों पर 50% से कम आरक्षण को लेकर शशांक शर्मा ने कहा "पश्चिम बंगाल में कम आरक्षण है. हरियाणा में 70% आरक्षण किया गया था. लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है और यह मामला कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट में जिस दिन निर्णय आएगा उस दिन वह खारिज हो जाएगा."


आरक्षण को लेकर कैबिनेट में चर्चा: "आरक्षण को लेकर कैबिनेट में चर्चा की गई विधानसभा का सत्र बुलाया गया है. अध्यादेश लाया जाएगा. इसका क्या असर देखने को मिलेगा. इस पर शर्मा ने कहा "देश संविधान से चलता है. यह जो भी मैं बातें कह रहा हूं. संविधान के जानकार होने के नाते कह रहा हूं. मुझे पता है कि संविधान में 50% से ज्यादा आरक्षण देने का कहीं कोई प्रावधान नहीं है. चाहे कुछ भी कर लीजिए. बाद में आप केंद्र सरकार के ऊपर अपना ठीकरा फोड़ देंगे. अनुसूची 9 के तहत इसे लाया जाए और इस पर कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं हो सकती, ऐसा नहीं है. आज से लगभग 8 साल पहले सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्य खंडपीठ ने यह भी निर्णय लिया है. अब अनुसूची 9 भी न्यायालय के बाहर नहीं है. उस पर भी कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है इसलिए तमिलनाडु के फैसले के आधार पर छत्तीसगढ़ में यह लागू नहीं कर सकते.



बता दें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण का नया कोटा तय हुआ है. सूत्रों की माने तो सरकार आदिवासी वर्ग ST को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32% आरक्षण देगी. अनुसूचित जाति- SC को 13% और सबसे बड़े जातीय समूह अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC को 27% आरक्षण मिलेगा. वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण दिया जाएगा. इसके लिए कैबिनेट ने दो विधेयकों में बदलाव के प्रारूप को मंजूरी दी है.

यह भी पढ़ें: कवासी लखमा के बयान ने पकड़ा तूल, पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री आमने-सामने



आरक्षण के मुद्दे को लेकर अब तक का पूरा घटनाक्रम: छत्तीसगढ़ में सरकार ने 2012 आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था. इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32% कर दिया गया. वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 16% से घटाकर 12% किया गया. इसको गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी. बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के आरक्षण अधिनियमों की उस धारा को रद्द कर दिया. जिसमें आरक्षण का अनुपात बताया गया है. इसकी वजह से आरक्षण की व्यवस्था संकट में आ गई. भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है और परीक्षाएं टाल दी गईं. काउंसलिंग के लिए सरकार ने कामचलाऊ रोस्टर जारी कर 2012 से पहले की पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की. इस बीच आदिवासी समाज के पांच लोग उच्चतम न्यायालय पहुंचे. राज्य सरकार ने भी इस फैसले के खिलाफ अपील की है. एक अध्ययन दल भी तमिलनाडू और कर्नाटक की आरक्षण व्यवस्था का अध्ययन करने भेजा है. 1 नवम्बर 2022 को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अधिसूचना जारी कर दी.

रायपुर: reservation issue in chhattisgarh छत्तीसगढ़ में लगातार आरक्षण का मुद्दा गरमाता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर जहां एक ओर राजनीतिक दल आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं. वहीं आदिवासी समाज कांग्रेस सरकार सहित विपक्ष में बैठी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. भानूप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में यह देखा जा सकता है. लेकिन इस बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर ऐसे कौन से राज्य हैं, जहां 50% से अधिक आरक्षण की व्यवस्था है. वह किन परिस्थितियों में है. क्या वह लागू किया गया या फिर उसे भी कोर्ट के द्वारा खारिज किया गया. इन तमाम सवालों के जवाब के लिए ही भारत ने संविधान के जानकार वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा से बात की है.

छत्तीसगढ़ में 50% से ज्यादा नहीं मिल सकता आरक्षण!


50% से ज्यादा आरक्षण संभव नहीं : 50% से ज्यादा आरक्षण वाले राज्यों को लेकर जब शशांक शर्मा से सवाल किया गया तब उन्होंने बताया कि "संविधान की व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट ने जो 1992 में इंदिरा साहनी के केस में जो अपना फैसला सुनाया था. उसके बाद महाराष्ट्र राजस्थान जैसे कई राज्यों ने 50% आरक्षण देने का प्रयास किया. हालिया उदाहरण मराठा आरक्षण महाराष्ट्र में किया गया था. उस समय 68% आरक्षण महाराष्ट्र में दिया गया था. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2021 में उसे खारिज कर दिया है. एक बार पुनः स्थापित किया किसी भी राज्य में, किसी भी स्थिति में 50% से ज्यादा आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता. छत्तीसगढ़ में भी हाईकोर्ट ने 2012 में पारित अधिनियम पर जब फैसला सुनाया है. उस पर भी कहा कि 50% के भीतर ही आरक्षण लागू किया जाएगा. भले ही आरक्षण अनुपात ऊपर नीचे किया जा सकता है. लेकिन यह 50% से ज्यादा नहीं हो सकता ऐसे में आप केवल इस मुद्दे को लेकर राजनीति कर सकते. प्रस्ताव पारित कर सकते हैं. विधानसभा में विधेयक पारित कर सकते हैं, क्वांटिफाइबल आयोग लगा सकते हैं. उसकी छूट है. लेकिन संविधान के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप यह आज नहीं तो कल न्यायालय में जाकर खारिज हो जाएगा."



जब साल 2012 में यह आरक्षण लाया गया था तो क्या तत्कालीन सरकार को नहीं पता था कि आने वाले समय में इसकी क्या स्थिति होगी. इस पर शशांक शर्मा ने कहा "उनको भी यह बात पता थी. लेकिन उस समय सरकार की जिम्मेदारी है. अनुसूचित जनजाति वर्ग की संख्या 32% है. उनको इसकी ज्यादा जरूरत है तो संविधान में आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई है. वह मूलतः दो वर्गों के लिए लागू की गई थी. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति इनको आरक्षण देना सरकार की प्राथमिकता थी. उनकी आबादी के हिसाब से लाया गया. जानकार उस समय भी जानते थे कि यह संविधान की दृष्टि से सही नहीं है. इसलिए केस लंबा खींचता रहा और आखिरकार पिछले 2 महीने पहले इसका निर्णय आया तो यह खारिज हो गया."

झारखंड में 77% आरक्षण: शशांक ने कहा "झारखंड में 77% किया गया था आप कुछ भी कर लीजिए तमिलनाडु का उदाहरण देकर आप कुछ नहीं कर सकते, तमिलनाड एक बहुत ही अपवाद स्वरूप है. वहां आरक्षण स्वतंत्रता के पूर्व से चला रहा है इसलिए भारत का संविधान लागू होने के बाद उसका प्रभाव नहीं पड़ा. वहां 69% आरक्षण कब से है. यदि तमिलनाडु को छोड़ दिया जाए तो आप कहीं भी किसी प्रदेश में आरक्षण को 50% से ज्यादा करेंगे तो न्यायालय में जाकर खारिज हो जाएगा."

वहीं कुछ जगहों पर 50% से कम आरक्षण को लेकर शशांक शर्मा ने कहा "पश्चिम बंगाल में कम आरक्षण है. हरियाणा में 70% आरक्षण किया गया था. लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है और यह मामला कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट में जिस दिन निर्णय आएगा उस दिन वह खारिज हो जाएगा."


आरक्षण को लेकर कैबिनेट में चर्चा: "आरक्षण को लेकर कैबिनेट में चर्चा की गई विधानसभा का सत्र बुलाया गया है. अध्यादेश लाया जाएगा. इसका क्या असर देखने को मिलेगा. इस पर शर्मा ने कहा "देश संविधान से चलता है. यह जो भी मैं बातें कह रहा हूं. संविधान के जानकार होने के नाते कह रहा हूं. मुझे पता है कि संविधान में 50% से ज्यादा आरक्षण देने का कहीं कोई प्रावधान नहीं है. चाहे कुछ भी कर लीजिए. बाद में आप केंद्र सरकार के ऊपर अपना ठीकरा फोड़ देंगे. अनुसूची 9 के तहत इसे लाया जाए और इस पर कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं हो सकती, ऐसा नहीं है. आज से लगभग 8 साल पहले सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्य खंडपीठ ने यह भी निर्णय लिया है. अब अनुसूची 9 भी न्यायालय के बाहर नहीं है. उस पर भी कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है इसलिए तमिलनाडु के फैसले के आधार पर छत्तीसगढ़ में यह लागू नहीं कर सकते.



बता दें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण का नया कोटा तय हुआ है. सूत्रों की माने तो सरकार आदिवासी वर्ग ST को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32% आरक्षण देगी. अनुसूचित जाति- SC को 13% और सबसे बड़े जातीय समूह अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC को 27% आरक्षण मिलेगा. वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण दिया जाएगा. इसके लिए कैबिनेट ने दो विधेयकों में बदलाव के प्रारूप को मंजूरी दी है.

यह भी पढ़ें: कवासी लखमा के बयान ने पकड़ा तूल, पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री आमने-सामने



आरक्षण के मुद्दे को लेकर अब तक का पूरा घटनाक्रम: छत्तीसगढ़ में सरकार ने 2012 आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था. इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32% कर दिया गया. वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 16% से घटाकर 12% किया गया. इसको गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी. बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के आरक्षण अधिनियमों की उस धारा को रद्द कर दिया. जिसमें आरक्षण का अनुपात बताया गया है. इसकी वजह से आरक्षण की व्यवस्था संकट में आ गई. भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है और परीक्षाएं टाल दी गईं. काउंसलिंग के लिए सरकार ने कामचलाऊ रोस्टर जारी कर 2012 से पहले की पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की. इस बीच आदिवासी समाज के पांच लोग उच्चतम न्यायालय पहुंचे. राज्य सरकार ने भी इस फैसले के खिलाफ अपील की है. एक अध्ययन दल भी तमिलनाडू और कर्नाटक की आरक्षण व्यवस्था का अध्ययन करने भेजा है. 1 नवम्बर 2022 को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अधिसूचना जारी कर दी.

Last Updated : Dec 6, 2022, 12:02 PM IST
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